संघ के
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वर्षो की गौरवशाली यात्रा का स्मरण

 

संघ शताब्दी वर्ष
1925 - 2025

पुस्तक का संक्षिप्त परिचय

1925 में स्थापित संघ की एक आकर्षक कहानी, जो समय के साथ ओलों और धूप में एक लंबा सफर तय करने के बाद एक मजबूत और गतिशील संगठन बन गया है। चूंकि संघ 2025 में अस्तित्व के 100 साल पूरे करने की कगार पर है, इसलिए यह जीवंत, ऊर्जा से भरपूर और साझा करने के लिए अनुभवों का खजाना है।

संघ ने ऊंचाइयों को छुआ है, घुमावदार नदियों को पार किया है और संकट की घाटियों से बचकर निकला है, और चोटियों पर विजय प्राप्त की है।

100 वर्ष की अपनी गौरवशाली यात्रा में , संघ भारत के लिए पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है , और , पाठकों को संघ की रोमांचक यात्रा में इसके दिनों, संघ की सीखों और आगे की योजना को जानने के लिए आमंत्रित किया जाता है। जो लोग पृष्ठों की यात्रा करेंगे, वे संघ के मूल्य की सराहना करेंगे, एक ऐतिहासिक और शानदार संगठन।

यह पुस्तक एक महत्वाकांक्षी उपक्रम है, जिसका उद्देश्य संघ की सौ साल की गौरवशाली यात्रा को समेटना और इसके आंतरिक संगठनात्मक गतिशीलता को परिलक्षित करना है।

यह पुस्तक स्पष्ट करने का प्रयास करती है कि संगठन अपने वर्तमान कद तक कैसे पहुंचा है। इसमें संघ परिवार के संगठनों और हिंदुत्व तथा संघ से जुड़ी प्रमुख हस्तियों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है। यह पुस्तक 2025 में संघ की आसन्न शताब्दी के अवसर पर लिखी गई है, जिसमें वर्षों से इसकी उल्लेखनीय यात्रा का जश्न मनाया गया है।

चिन्मय सक्सेना और आयुष्मान सिंह ने संघ के पिछले मील के पत्थर, वर्तमान उपलब्धियों और भविष्य के विचारों का मिश्रण प्रस्तुत किया है, यह पुस्तक दशकों से संघ की असाधारण यात्रा को श्रद्धांजलि है। यह भारतीय संस्कृति के भीतर संगठन के मौलिक मूल्यों, सिद्धांतों और गहन महत्व पर प्रकाश डालती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संक्षिप्त परिचय

1925 में परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में एक उल्लेखनीय शताब्दी पूरी कर रहा है। यह पुस्तक दशकों से संघ की असाधारण यात्रा के लिए एक श्रद्धांजलि है। यह भारतीय संस्कृति के भीतर संगठन के मूलभूत मूल्यों, सिद्धांतों और गहन महत्व पर प्रकाश डालती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय राष्ट्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में अडिग है, और हमारी संस्कृति के आधार के रूप में “भारत शक्ति” के आदर्श वाक्य के प्रति भी अडिग है। शायद किसी भी अन्य संस्था से अधिक संघ हिंदुत्व और राष्ट्रीय एकता के लिए उत्साहपूर्वक खड़ा रहा है।

यह घोषणा करना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि अपने असंख्य प्राथमिक और सहायक संगठनों, लाखों समर्पित स्वयंसेवकों और प्रमुख नेताओं के साथ, संघ देश का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली संगठन है। यह जोर “संघ शक्ति कलियुगे” के नारे में अपनी सबसे संक्षिप्त अभिव्यक्ति पाता है।

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लेखक परिचय

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चिन्मय सक्सेना

श्री चिन्मय सक्सेना, एक समर्पित व्यक्तित्व, सादा जीवन, उच्च विचार के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति हैं, श्री सक्सेना तीसरी पीढ़ी के अधिवक्ता हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से राजनीति विज्ञान और शासन में स्नातक (ऑनर्स) और यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज के विधि संकाय से एलएलबी (कानून) की डिग्री प्राप्त की। वे बाल्यकाल से ही संघ से जुड़े रहे हैं।

वे जयपुर युवा संसद और किरोड़ीमल युवा संसद के संस्थापक भी हैं। श्री सक्सेना, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, लोकसभा सचिवालय के साथ काम कर चुके हैं, जिससे सार्वजनिक नीति, योजना और कानूनी मुद्दों में उनका अनुभव समृद्ध हुआ है।

कानूनी पेशे में अपने नियमित दिनचर्या के साथ-साथ, पढ़ने और सीखने के लिए उनका जुनून जारी है, उन्होंने येल, कोलंबिया विश्वविद्यालय, मिशिगन विश्वविद्यालय, वर्जीनिया विश्वविद्यालय, लंदन बिजनेस स्कूल, (माइक्रो मास्टर्स) आईआईएम-बैंगलोर और आईएमएफ से कानून, सार्वजनिक नीति, व्यवसाय और वित्त में विभिन्न मान्यताएँ भी प्राप्त की हैं।

आप की पहली पुस्तक इंडिया पोस्ट इंडिपेंडेंस: द मेकिंग ऑफ ए नेशन, जो 2021 में लिखी और प्रकाशित हुई, पुडुचेरी की पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर डॉ. किरण बेदी द्वारा अग्रेषित की गई है। यह पुस्तक देश की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 'आजादी का अमृत महोत्सव' के अवसर पर लिखी गई थी, यह पुस्तक आजादी के बाद से लेकर हाल के समय तक देश में हुई प्रमुख घटनाओं का एक संपूर्ण आख्यान बनाने का प्रयास करती है और समय के साथ लिखे गए लेखों और निबंधों का संग्रह है।

संघ पर किताब लिखना उनके लिए एक स्वप्न के सच होने जैसा है, उनका मानना है कि संघ एक गतिशील और अद्भुत संगठन है, जो समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए प्रतिबद्ध है। वह संघ के आदर्शों और दर्शन से गहराई से प्रभावित और प्रेरित हैं, और संघ को समर्पित एक पुस्तक लिखने में उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है क्योंकि संघ वर्ष 2025 में अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है।

अपने शब्दों में, "पुस्तक उन पाठकों के लिए विशेष रुचिकर होगी, जो संघ को एक संगठन के रूप में समझना चाहते हैं और 1925 में संघ की स्थापना के बाद से वर्तमान समय तक की संघ की अभूतपूर्व यात्रा को महत्व देना चाहते हैं। मेरा मानना है कि" संघ एक संगठन से कहीं अधिक है; यह जीवन जीने का एक तरीका है, और पुनरुत्थानशील भारत को एकजुट करने का एक वाहन है।

आयुष्मान सिंह

श्री आयुष्मान सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से अंग्रेजी में स्नातक हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय से ही विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत आपने आपराधिक कानून एवं न्याय में विशेषज्ञता हासिल करते हुए विधि परास्नातक की उपाधि ओ०पी० जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी से प्राप्त की है।

सन् 2025 में अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका विश्व व्यापी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एक स्वैच्छिक परंतु अनुशासित एवं बहु‌आयामी संगठन है। जिसके सामाजिक एवं राष्ट्रहित के कई उद्देश्य हैं। प्राचीन को अर्वाचीन के दृष्टिकोण से देखते हुए श्री सिंह का संघ के विविध पक्षों की पड़‌ताल करती एवं उसके मूल्यों को सही विस्तार देती यह पुस्तक "द् आर.एस.एस." स्वयं में अभिनव एवं पूर्ण प्रयास है। सन् 1925 में अपनी स्थापना के शुरुआती वर्षों से लेकर विगत 100 वर्षों में संघ की विविध क्षेत्रों में की गई सभी सेवाओं को समग्रता के साथ शोध कर पाना एवं उसकी मौलिकताओं सहित शब्दों में पिरोना जितना महान है उतना ही कष्टसाध्य भी.

हालांकि संघ, के बंधुओं एवं कार्यकर्ताओं द्वारा क्षेत्रीय भाषा में कई साहित्य पहले भी लिखे जा चुके हैं परंतु हिंदी भाषा की सघन एवं सटीक अभिव्यक्ति पाकर कोई भी साहित्य सर्वग्राह्य एवं सर्वप्रिय बन जाता है। हिंदी के विशाल पाठकों को समर्पित ये पुस्तक न सिर्फ उनका संघ के प्रति दृष्टिकोण और स्पष्ट करेगी अपितु उन्हें आधुनिकता के साथ जोड़‌ते हुए परिमार्जित, परिवर्द्धित एवं लोककल्याणकारी सिद्ध करेगी।

संपादक परिचय

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जगमोहन सक्सेना

श्री जगमोहन सक्सेना कानून के क्षेत्र में चार दशकों से अधिक समय से वकालत कर रहे हैं। उन्होंने मुख्य रूप से राजस्थान उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वकालत की है।

श्री सक्सेना 1977 से संघ से जुड़े हुए हैं। संघ के साथ उनका जुड़ाव 1976-1977 में उनके कॉलेज के दिनों से है, जब उन्हें श्री एकनाथ जी रानाडे से प्रेरणा एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, जिसने उन पर एक अमिट छाप छोड़ी और उन्हें संघ के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित किया।

अपने कानूनी अभ्यास के दौरान, उन्होंने राजस्थान राज्य के प्रमुख विभागों के लिए स्थायी अधिवक्ता और दो बार राजस्थान राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में कार्य किया है।

संघ के प्रति उनका समर्पण उनकी निरंतर सेवा और राष्ट्र की सेवा के दर्शन के प्रति प्रतिबद्धता में स्पष्ट है। संघ के 100 वर्षो के इतिहास के बारे में पुस्तक के संपादन में उनकी भागीदारी उनके लिए बहुत गर्व और प्रेरणा का स्रोत है।

उन्होंने उल्लेख किया कि इस परियोजना पर काम करने के अवसर ने उन्हें संघ के बारे में लिखी गई विभिन्न पुस्तकों को गहराई से पढ़ने का मौका दिया। इस शोध से उन्हें संगठन की कार्यप्रणाली और इतिहास की व्यापक समझ प्राप्त करने में मदद मिली, जो पुस्तक की विषय-वस्तु को निर्देशित करने और सुझाने के लिए आवश्यक थी।

वे संघ की स्थापना और निर्माण में परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जी एवं गुरुजी गोलवलकर के योगदान के प्रति अपना गहरा सम्मान और प्रशंसा व्यक्त करते हैं। उनका मानना है कि संघ की सौ वर्षो की यात्रा ऐतिहासिक एवं प्रेरणादायक रही है।

पुस्तक के संपादक के रूप में उनकी भागीदारी संघ के दर्शन के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता और संगठन के महत्वपूर्ण इतिहास और सिद्धांतों के संरक्षण और प्रसार में योगदान देने की उनकी इच्छा को दर्शाती है। उनका मानना है कि यह पुस्तक दशकों से संघ की असाधारण यात्रा के लिए एक पुष्पांजलि के रूप में काम करेगी। यह भारतीय संस्कृति के भीतर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मौलिक मूल्यों, सिद्धांतों और गहन महत्व पर प्रकाश डालती है.

सह संपादक परिचय

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शरद मिश्रा

अत्यंत सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि एवं गहन विश्लेषणात्मक क्षमता के धनी, श्री शरद मिश्रा रियल एस्टेट, होटल और रिसोर्ट के सफल व्यवसायी हैं। परिवारिक व्यवसाय में शामिल होने से पहले उन्होंने यूरोप में प्रतिष्ठित संगठनों में कार्य किया। वे नियमित रूप से रियल एस्टेट पर राष्ट्रीय और स्थानीय अखबारों में लेख प्रकाशित करते हैं।

वह अंतर्राष्ट्रीय उद्यमी संगठन, एंटरप्रेन्योर ऑर्गेनाइजेशन के राजस्थान चैप्टर के संस्थापक सदस्य हैं और वर्ष 2013 - 14 में संगठन के अध्यक्ष रहे।

16 अप्रैल 2022 से वह क्रीड़ा भारती के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हैं और राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व निभा रहे हैं। संघ शताब्दी यात्रा पर उनका विश्वास है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत निर्माण की अद्वितीय शक्ति है।

श्री चिन्मय सक्सेना व आयुष्मान सिंह द्वारा वर्ष 2023 में अंग्रेज़ी भाषामें रचित “THE RSS 100 YEARS OF SERVICE DEDICATION & NATION BUILDING” का नवीन हिन्दी अनुवाद “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ~ सेवा समर्पण और राष्ट्र निर्माण के 100 वर्ष” संघ के इतिहास, सांस्कृतिक दृष्टिकोण व संगठनात्मक प्रभाव को गहराई से प्रज्वलित करता है। देश-भर की हज़ारों शाखाएँ और लाखों स्वयंसेवक “संघे शक्ति कलियुगे” के आदर्श को प्रत्यक्ष करते हुए युवाओं का आह्वान करते हैं कि वे समृद्ध, सशक्त भारत के निर्माण में सहभागी बनें।

पुस्तक के हिंदी संस्करण में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में उनके विचार और अनुभव ने उन्हें इस पुस्तक परियोजना में योगदान देने में मदद की है. आध्यात्मिक, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध उनके पारिवारिक परिवेश एवं संस्कारों ने भी उन्हें इस शोध कार्य हेतु सक्षम बनाया। जिससे वो संघ के इतिहास सहित उसकी कार्यशैली का निष्पक्ष ब्यौरा अपने पाठकों तक पहुंचा सकें।

उनका मानना है की भारत जैसी बहुभाषी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अंग्रेज़ी के महत्त्वपूर्ण साहित्य—विज्ञान, दर्शन, इतिहास एवं कला—का हिन्दी में अनुवाद और प्रकाशन अनिवार्य है। इससे ज्ञान का लोकतंत्रीकरण होता है; वे कृतियाँ उन करोड़ों पाठकों की पहुँच में आती हैं जो हिन्दी में सहज होते हैं। यह प्रक्रिया विविध सामाजिक-आर्थिक वर्गों में साझा बौद्धिक संवाद को फलदायी बनाती है, हिन्दी की शब्द सम्पदा को समृद्ध करती है और राष्ट्र-निर्माण को बल देती है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु The RSS को हिन्दी में पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है, जिससे राष्ट्र-निर्माण की चेतना व्यापक जन-समुदाय तक पहुँच सके।

चित्र शाला

प्रेरणा स्रोत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक परमपूजनीय डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार जी

श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर "गुरुजी"

पुस्तक की प्रशंसा

  • यह प्रसन्नता का विषय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी गौरवशाली यात्रा के 100 वर्षों का एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार करने जा रहा है। इस शताब्दी वर्ष के अवसर पर "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - सेवा समर्पण और राष्ट्र निर्माण के 100 वर्ष" पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है।

    सन 1925 में परम पूजनीय डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जो बीज बोया था, वह आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है। इस वटवृक्ष की अब कितनी शाखाएं और पत्तियां हैं, उनकी गिनती करना मुश्किल है। लेकिन यह संगठन भारतीय जनमानस के बीच बहुत ही दृढ़तापूर्वक अपनी जड़ें फैलाकर समर्थ रूप में खड़ा है और वटवृक्ष की ही भांति विकास कर रहा है। केवल देश में ही नहीं, बल्कि जहां कहीं भी भारतीय हैं, उन सभी देशों में संघ कार्यरत है। विदेश में बसे भारतीयों को अपने देश एवं संस्कृति के साथ जोड़कर रखने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल एक संगठन नहीं बल्कि एक परंपरा बन चुका है।

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति, धर्म और संस्कृति की रक्षा के आदर्श का पालन करता है और इस प्रतिज्ञा को सार्थक बनाने और समाज की सेवा करने के लिए कार्य करता है। मुझे आशा है कि इस पुस्तक के माध्यम से संघ के विचारों, उद्देश्यों और कार्यों को समझने का एक सुनहरा अवसर मिलेगा।

    मैं इस पुस्तक के प्रकाशन की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।

    - श्री भजन लाल शर्मा
    माननीय मुख्यमंत्री,
    राजस्थान सरकार
  • लगभग 100 वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना भारत के संपूर्ण समाज को एक सूत्र में बांधकर राष्ट्र को गौरव के उच्चतम शिखर पर ले जाने के पुनीत उद्देश्य से की गई थी। संघ का मानना है कि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु भारत को विश्व पटल पर एक आत्मनिर्भर तथा शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकसित होने की आवश्यकता है। संघ अपने अनेक संबद्ध संगठनों तथा लाखों समर्पित स्वयंसेवकों के परिश्रम, त्याग व बलिदान से हर भारतीय में, चाहे वह किसी भी जाति या समुदाय से हो, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करके तथा उसकी सामाजिक एवं बौद्धिक चेतना को उन्नत बनाकर उसे राष्ट्र की विचारधारा से जोड़ने के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है।

    भारत की सनातनी संस्कृति का यह संदेश है कि सभी धर्मों का मूल वेदों में है 'वेदो अखिल धर्ममूलम्' और संघ भारतवर्ष की इस सनातनी संस्कृति पर आघात के प्रयासों का प्रतिकार करते हुए सभी भारतवंशियों के मन में सनातन मूल्यों को आत्मसात करने की भावना उत्पन्न करने के लिए कार्य कर रहा है। तथापि, देश के सभी समुदायों के सर्वतोमुखी कल्याण के प्रति समर्पित संघ की कार्यप्रणाली के संबंध में समाज के अनेक वर्गों में अनेक भ्रांतियां व्याप्त हैं।

    इन्हें सुधीजनों द्वारा दूर करने के निरंतर प्रयास किए जाते रहे हैं तथा श्री चिन्मय सक्सेना एवं श्री आयुष्मान सिंह द्वारा लिखित पुस्तक 'सेवा समर्पण और राष्ट्र निर्माण के 100 वर्ष' इसी दिशा में किया गया एक अत्यधिक सराहनीय प्रयास है। पुस्तक में पाठकों को ‘संघे शक्ति कलियुगे' की विस्तृत व्याख्या से अवगत कराते हुए संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर उसकी गौरवशाली यात्रा का विशद वर्णन प्रस्तुत किया गया है।

    मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस पुस्तक से संघ और उसके संगठनात्मक कामकाज को समझने के लिए पाठकों को प्रामाणिक जानकारी प्राप्त होगी। मैं पुस्तक के सफल प्रकाशन पर लेखकद्वय को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

    - श्री अर्जुन राम मेघवाल
    माननीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
    व संसदीय कार्य राज्य मंत्री
    भारत सरकार
  • यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन है, और इसे धैर्य, दृढ़ता और स्पष्टता के साथ लिखा गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ वर्षों को एक पुस्तक में समेटना बहुत कठिन कार्य है।

    पुस्तक में संघ के लगभग सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, और मुझे विश्वास है कि यह उन पाठकों के लिए एक परिसंपत्ति साबित होगी जो संघ और भारतीय समाज में संघ की भूमिका के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं।

    पुस्तक का उद्देश्य संघ की शताब्दी लंबी यात्रा को समेटना और इसके आंतरिक संगठनात्मक गतिशीलता को गहराई से समझना है। यह स्पष्ट करने का प्रयास करता है कि संगठन अपने वर्तमान कद तक कैसे पहुंचा है। यह संघ परिवार के संगठनों और हिंदुत्व और संघ से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों का संक्षिप्त परिचय भी प्रदान करता है।

    यह पुस्तक संघ की सौ वर्षो की ऐतिहासिक जीवन गाथा का स्मरण करती है।

    मैं लेखकों को संघ पर पुस्तक लिखने के लिए बधाई देता हूँ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण करेगा, यह पुस्तक दशकों से संघ की कार्यप्रणाली और विकास को समझने के लिए महत्वपूर्ण होगी।

    - श्री ओम प्रकाश माथुर
    महामहिम राज्यपाल
    सिक्किम
  • संघ समाज में सिर्फ एक संगठन ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज है । सुशासित समाज की अवधारणा के लिए संघ की साधना को समाज व्यापी करना आवश्यक है। संघ के कार्यकर्ताओं के परिश्रम, त्याग, बलिदान व प्रसास अनुकरणीय है ।

    यह हर्ष का विषय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष 2025 में है और इस सुवअसर पर दो प्रतिभावान युवाओं श्री चिन्मय सक्सेना एवं श्री आयुष्मान सिंह द्वारा लिखित यह पुस्तक "राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ सेवा समर्पण और राष्ट्र निर्माण के 100 वर्ष " के रूप में विस्तृत और ज्ञानवर्धक विवरण है।

    आपकी यह पुस्तक आवश्यक जानकारियों से भरपूर पठनीय प्रकाशन सिद्ध होगा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विकास यात्रा, परम्पराओं और संगठनात्मक प्रक्रियाओं का समाज को परिचय कराएगा.

    मुझे आशा है कि राष्ट्र भक्ति को संजोए आपका यह प्रकाशन सशक्त और समृद्ध भारत के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा। आपका यह प्रकाशन अपने उद्देश्यों को प्राप्त करें। आप आगे भी इसी तरह प्रकाशन करते रहें इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ ।

    - श्रीमती दिया कुमारी
    माननीय उप मुख्यमंत्री, राजस्थान
    वित्त, सार्वजनिक निर्माण, पर्यटन, कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व
    महिला एवं बाल विकास, बाल अधिकारिता विभाग,
    राजस्थान सरकार
  • यह वर्ष बहुत ही गौरवपूर्ण और आनन्ददायक क्षण की अनुभूति करा रहा है। क्योंकि इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र निर्माण के 100 वर्ष पूरे कर रहा है।

    संघ हमेशा से ही एक ऐतिहासिक और गौरवशाली संगठन रहा है, 1925 में अपनी स्थापना से अब तक संघ लाखों की संख्या में लोगों को प्रेरित करता रहा है। संघ हिन्दू पुनर्जागरण और राष्ट्र निर्माण की एक ताकत के रूप में विकसित हुआ है, जिसकी पहुंच संघ शाखाओं की सीमाओं से परे है। संघ "जाति धर्म संस्कृति" की रक्षा के आदर्श का पालन करता है और इस प्रतिज्ञा को सार्थक बनाने तथा समाज की सेवा करने के लिए कार्य करता है। संघ सभी समुदायों के साथ आध्यात्मिक भाईचारा बनाए रखता है, इसका मुख्य कारण यह है कि संघ की हिन्दू की परिभाषा किसी धर्म से जुड़ी नहीं है, बल्कि भारत की एक राष्ट्रीय पहचान है।

    यह एक सर्वसमावेशी शब्द है जो राष्ट्र के सभी समुदायों और आस्थाओं को समाहित करता है। यही कारण है कि संघ सामान्य लोगों का संगठन बन गया।

    इस गौरवशाली अध्याय के अवसर पर व इस सफलता भरे आयाम को छूने के लिए संघ की सरहना करता हूँ। पूनः संपादकों और संघसंचालकों को हार्दिक शुभकानाऐं देता हूँ और सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।

    - श्री प्रवेश साहिब सिंह
    माननीय (कैबिनेट मंत्री), लोक निर्माण विभाग,
    विधायी कार्य, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण,
    जल एवं गुरुद्वारा चुनाव,
    दिल्ली सरकार
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय राष्ट्रवाद और देशभक्ति को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने वाले सबसे बड़े स्वैच्छिक संगठनों में से एक है।

    संघ मानता है कि भारत की दृष्टि इसकी प्राचीन संस्कृति और परंपराओं में निहित है, संघ स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा आपदा राहत आदि के क्षेत्र में गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला के माध्यम से राष्ट्र निर्माण और सेवा के लिए प्रतिबद्ध है।

    मुझे उम्मीद है कि संघ की शानदार यात्रा को दर्शाने वाली यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सेवा, समर्पण और राष्ट्र निर्माण के 100 वर्ष” संघ की धीरज, लचीलापन और निरंतर विकसित होने वाले महत्व का प्रमाण बनेगी।

    मेरा मानना है कि दोनों युवा लेखकों की वैचारिक परवरिश जिसने उनके व्यक्तित्व और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार दिया है, ने पुस्तक की सामग्री को बेहतर बनाने में मदद की होगी। मुझे यकीन है कि यह पुस्तक एक बड़ी सफलता होगी।

    चिन्मय जी एवं आयुष्मान जी और को मेरी शुभकामनाएँ

    - श्री नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी'
    (कैबिनेट मंत्री) औद्योगिक विकास निर्यात संवर्धन,
    एनआरआई एवं निवेश प्रोत्साहन,
    उत्तर प्रदेश सरकार
  • भारत भर में हजारों शाखाओं और लाखों स्वयंसेवकों के व्यापक नेटवर्क के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक मजबूत और शक्तिशाली संगठन है जो भारतीयता की भावना के साथ राष्ट्र निर्माण की दिशा में काम कर रहा है।

    यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ऐतिहासिक यात्रा को याद करते हुए लिखी गई है क्योंकि संघ अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण करने की कगार पर है।

    मैं लेखकों को उनके प्रयास के लिए बधाई देता हूं और मुझे यकीन है कि यह पुस्तक संघ के संगठनात्मक कामकाज को समझने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रूप से काम करेगी।

    मेरी शुभकामनाएं.

    - डॉ. संबित पात्रा
    माननीय सांसद पुरी (लोकसभा राष्ट्रीय प्रवक्ता)
    भारतीय जनता पार्टी
  • भारत के ज्ञात इतिहास में राष्ट्र की मूल संस्कृति को जाग्रत रखने में सर्वाधिक योगदान करने वाले संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम लिया जा सकता है। संघ एक संगठन से आगे बढ़कर राष्ट्र की दिशा सुनिश्चित करने वाले 100 करोड़ से ऊपर भारतीयों का प्रतिनिधि बन चुका है। सांस्कृतिक आजादी की ओर बढ़ते कदम संघ के कारण ही अग्रणी हो सके।

    परम पूजनीय आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी के नेतृत्व में प्रारंभ हुई तपश्चर्या का यह स्वरूप संपूर्ण विश्व को दिशा दे रहा है। इन 100 वर्षों के कालक्रम पर श्री चिन्मय सक्सेना और श्री आयुष्मान सिंह ने व्यापक दृष्टि डालने का काम किया है। संघ का अध्ययन करने और उसकी दृष्टि को समझकर राष्ट्र के लिए योगदान करने की प्रेरणा इस पुस्तक से प्राप्त होगी।

    लेखक द्वय के मनोयोगपूर्ण परिश्रम का अभिनंदन और पुस्तक की सफलता के लिए प्रभु से प्रार्थना है।

    - श्री गोपाल शर्मा
    माननीय विधायक
    सिविल लाइंस जयपुर
    राजस्थान विधानसभा
  • किसी भी व्यक्ति या संगठन के जीवन को शब्दों मे समेटना सहज और सरल नहीं होता है, और लगभग एक शताब्दी के जीवन को एक ही पुस्तक में समेटना अपने आप में अतुलनीय कार्य है, अत: इस कार्य के लिए लेखक एवं इस कार्य में लेखकों के सहयोगी प्रशंसा एवं धन्यवाद के पात्र है।

    सामाजिक क्षेत्र मे सदैव सक्रिय और समाज में सकारात्मक कार्यों को गति देने के लिए गतिशील संगठनों की गतिविधियों को संकलित कर समाज के समक्ष रखने का कार्य, वास्तव मे सराहनीय एवं एक अतिआवश्यक कार्य है। सामाजिक संगठनों के कार्यों का पुस्तक रूप में संग्रहण से ऐसे संगठनों के बारे में जानकारी प्राप्त करना सर्व सुगम हो जाता है ।

    यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अब तक की यात्रा के ऐतिहासिक प्रसंगों का संक्षिप्त और रोचकता से प्रस्तुति का सराहनीय प्रयास है, जो समाज के जिज्ञासु एवं प्रबुद्धजन को, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वाधिक चर्चित "सुव्यवस्थित कैडर-आधारित संगठन" से लेकर जन-जन तक पहुँचने के प्रक्रमों के साथ ही, संगठन की संगठनात्मक संरचना, दर्शन, सिद्धांत, आदर्श और विविध गतिविधियों को समझने, विश्लेषण करने तथा तथ्यपरक संकलित सामग्री का अवलोकन कर, संगठन के प्रति धारणा बनाने-बदलने का अवसर प्रदान करती है।

    सामाजिक संगठनों के बारे प्रामाणिक जानकारी जुटाकर, समाज के समक्ष रखना, कठिन परिश्रम के बिना संभव नहीं है। इस पुस्तकरूपी कुशल-सफल मेहनत के लिए के हार्दिक बधाई एवं कोटी-कोटी शुभकामनाएं तथा भविष्य में भी ऐसे प्रयासों के परिणामों की प्रतीक्षा में ।

    आपका शुभेच्छु।

    - श्री बसंत सिंह छाबा
    अतिरिक्त महाधिवक्ता
    राजस्थान सरकार
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सेवा, त्याग एवं राष्टभाव के सिद्धांतों पर आधारित संगठन है, जो अनुशासन, उद्देश्य की पवित्रता और भारत राष्ट्र के परम वैभव के प्रति अडिग प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

    संघ का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्र के उद्देश्य की पूर्णता के लिए अपने व्यापक सेवा कार्यों के साथ बड़े पैमाने पर हिंदू समाज को पुनजागृत और दृढ़ करना है, जो कि "परम वैभव" है, और इसे जीवन में भाईचारे, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण के जीवन दर्शन में सतत विकास और आदर्श नागरिकों के निर्माण के हमारे सनातनी दृष्टिकोण के साथ प्राप्त करना है।

    संघ राष्ट्र के भीतर लोगों और समुदायों के बीच सौहार्द और भाईचारे को बढ़ावा देकर इस उद्देश्य को प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है। संघ के स्वयंसेवकों को जो चीज बांधती है, वह किसी पंथ, व्यक्ति के प्रति निष्ठा नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण के लिए एक अघोषित प्रतिबद्धता और भारत माता के प्रति अटूट निष्ठा है.

    यह पुस्तक संघ के महासागर और उसके कार्य में दृष्टिकोण का एक विहंगम दृश्य प्रदान करती है।

    संघ की 100 वर्षों की गौरवशाली यात्रा को दर्शाते हुए पुस्तक लिखना वास्तव में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है, मैं यह पुस्तक लिखने में लेखकों की लगन और दृढ़ता के लिए उनकी हार्दिक सराहना करता हूँ.

    - श्री गुरचरण सिंह गिल
    अतिरिक्त महाधिवक्ता
    राजस्थान सरकार
  • एक संगठन के रूप में संघ अद्वितीय है। किसी अन्य संगठन ने राष्ट्र के लिए इतनी बड़ी स्वैच्छिक सेवा नहीं की है। दशकों से, पीढ़ी दर पीढ़ी संघ ने सहज रूप से तपस्या को चुना है और खुद को राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए समर्पित किया है।

    संघ व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। यह पुस्तक पाठकों और शिक्षाविदों के लिए संघ की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा को समझने में महत्वपूर्ण होगी।

    - श्री अभिनव प्रकाश
    (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो)
    सहायक प्रोफेसर
    दिल्ली विश्वविद्यालय
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जानना और समझना जितना कठिन बताया जाता है, यह उतना ही सरल है। “संघ की शाखा”संघ के बारे में सभी प्रकार की जिज्ञासाओं का समाधान है। परंतु समय के साथ साथ लेखक व प्रकाशक वर्ग ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में लेखन व प्रकाशन के माध्यम से समाज के बीच संघ के विषय को आगे बढ़ाया है।

    युवा लेखक श्री चिन्मय सक्सेना और श्री आयुष्मान सिंह द्वारा लिखित पुस्तक “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - सेवा, समर्पण और राष्ट्र निर्माण के 100 वर्ष संघ विस्तार रूपी यज्ञ में एक आहुति है। मैं पुस्तक के लेखकों व प्रकाशक का ईश्वरीय कार्य में योगदान देने के लिए अभिनंदन करता हूँ।

    - श्री हिमांशु शर्मा
    प्रदेश प्रवक्ता
    भारतीय जनता पार्टी
    राजस्थान
  • मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर लिखी पुस्तक के हिन्दी संस्करण के रूप में - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - सेवा, समर्पण और राष्ट्र निर्माण के सौ वर्ष - पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है।

    प्रत्येक सम्प्रदाय कुछ नियमों - आचार संहिता के आधार पर खड़ा होता है। हिन्दू किसी सम्प्रदाय का स्वरूप नहीं लेकिन आज राजनीति के अखाड़े में यह शब्द एक शक्तिशाली उपक्रम बन गया है। खुशी इस बात की है कि संघ की हिन्दू की परिभाषा किसी धर्म से जुड़ी नहीं बल्कि भारत की एक राष्ट्रीय पहचान है।

    निश्चय ही संघ की भूमिका पिछले वर्षों में समाज व राष्ट्र में परिवर्तन लाने वाले प्रयासों की रही है। संघ का सबसे महत्वपूर्ण योगदान आम नागरिकों के सामाजिक व बौद्धिक स्तर को ऊपर उठाने वाला रहा है। मुझे उम्मीद है कि इस पुस्तक के जरिए संघ के विचारों को अधिक से अधिक जानने का लोगों को मौका मिलेगा। संघ के मूल सिद्धांतों की जानकारी के साथ-साथ देश के निर्माण में संघ के योगदान को बताने वाली यह पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी साबित होगी । पुस्तक के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।

    - श्री गुलाब कोठारी
    प्रधान संपादक
    राजस्थान पत्रिक समूह
  • संघ का मूल उद्देश्य हिंदू समाज में निहित विविध घटकों को एकसूत्र में पिरोकर उन्हें उनकी सनातन धर्म-संस्कृति के आलोक में जागरूक एवं संगठित करना है, जिससे भारतवर्ष का समग्र और सर्वांगीण उत्थान संभव हो सके।

    संघ इस विश्वास में अडिग है कि समाज का सुव्यवस्थित विकास केवल शांतिपूर्ण, विधिसम्मत और नैतिक उपायों के माध्यम से ही सम्भव है। अपने आदर्शों की सिद्धि हेतु संघ सदा इन्हीं साधनों का अनुसरण करता है।

    यह पुस्तक विगत वर्षों में संघ की वैचारिक, सामाजिक और सांगठनिक यात्रा का एक विस्तृत एवं साक्ष्य-सम्पन्न विवेचन प्रस्तुत करती है। यह न केवल संघ को समझने के इच्छुक पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी, अपितु संगठन की कार्यपद्धति और दृष्टिकोण की गहराई तक पहुँचने में भी सहायक होगी।

    - डॉ. सौरभ जी
    उपकुलानुशासक
    दिल्ली विश्वविद्यालय

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